लेखक: बिकाश पराजुली
मुख्य पात्र: सीमा और निर्मल
एपिसोड 1: पहली नज़र
एक छोटा-सा गाँव था — हरियाली से घिरा हुआ, जहाँ लोग एक-दूसरे को नाम से जानते थे। उसी गाँव में एक प्राइमरी स्कूल था, लाल ईंटों से बना, पुराने ज़माने की घंटी और मिट्टी का आँगन। इसी स्कूल में पढ़ते थे दो बच्चे—सीमा और निर्मल।
सीमा नौ साल की थी। दो चोटियों में लाल रिबन बाँधकर रोज़ समय पर स्कूल आती। उसकी आँखों में मासूमियत थी और स्वभाव में सादगी।
निर्मल दस साल का था—शरारती लेकिन दिल का साफ़। वो अक्सर देरी से आता, लेकिन उसके चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान रहती।
उनकी पहली मुलाकात स्कूल के पहले दिन हुई थी। सीमा क्लास में पहले से बैठी थी, तभी निर्मल भागते हुए आया और उसके बगल में बैठ गया।
“तुम्हारा नाम क्या है?” निर्मल ने पूछा।
“सीमा,” उसने धीरे से कहा।
“मेरा नाम निर्मल है,” वो बोला, “हम दोस्त बन सकते हैं ना?” सीमा थोड़ी झिझकी, फिर मुस्कुरा दी।
उस दिन से दोनों की दोस्ती शुरू हो गई।
खेल-कूद और हँसी
लंच ब्रेक में दोनों एक साथ बैठते, टिफिन शेयर करते। सीमा की माँ के हाथों के पराठे और निर्मल के घर की बनी गुड़ की मिठाई—ये दोनों के बीच का पहला प्यार था। खेल के मैदान में सीमा रस्सी कूदती, और निर्मल पेड़ के नीचे बैठकर ताली बजाता। जब भी कोई और बच्चा सीमा को चिढ़ाता, निर्मल तुरंत बीच में आ जाता।
“सीमा मेरी दोस्त है। कोई कुछ नहीं कहेगा!” उसका यही डायलॉग था।
मासूम अहसास
एक दिन सीमा ने अपने बैग से एक कागज निकाला, जिस पर रंग-बिरंगे फूल बने थे।
“ये मैंने तुम्हारे लिए बनाया,” उसने कहा।
निर्मल थोड़ा झेंपा, फिर बोला, “अरे वाह! अब से मैं भी तुम्हारे लिए कुछ बनाऊँगा।”
उस कागज़ को उसने अपनी किताबों में संभाल कर रख लिया।
स्कूल की घंटी और दोस्ती का पहला दिन
शाम को स्कूल की घंटी बजी। बच्चे घर लौटने लगे। सीमा और निर्मल भी एक साथ चले। रास्ते में सीमा ने पूछा, “हम कल भी साथ चलेंगे?”
निर्मल ने मुस्कराते हुए कहा, “अब तो रोज़ ही चलेंगे, सीमा।”
सीमा कुछ नहीं बोली। बस मुस्कुरा दी।
उस दिन दोनों को नहीं पता था कि यह मासूम दोस्ती, सालों बाद उनकी सबसे खूबसूरत याद बनने वाली है।
एपिसोड 2: एक छाता, दो दिल
गाँव में सावन की शुरुआत हो चुकी थी। आसमान में बादल घिर आए थे और हवाओं में मिट्टी की सौंधी-सौंधी ख़ुशबू तैर रही थी। स्कूल जाते वक़्त रास्ता कीचड़ से भर गया था।
उस दिन सीमा ने छाता लेकर स्कूल आई थी—लाल रंग का, फूलों वाला सुंदर छाता।
निर्मल हमेशा की तरह बिना छाते के ही आया, बालों से पानी टपक रहा था, कपड़े कीचड़ से सने हुए।
सीमा ने जब उसे देखा, तो तुरंत आगे बढ़कर बोली, “अंदर क्यों नहीं आ रहे?”
निर्मल मुस्कराते हुए बोला, “टीचर डाँटेगी, कपड़े गंदे हैं।”
सीमा ने बिना कुछ कहे अपना छाता उसके सिर पर तान दिया।
“अब से हम दोनों एक ही छाते में चलेंगे,” सीमा ने कहा।
निर्मल उसे देखता रहा शब्द कम पड़ गए, लेकिन दिल कुछ कह रहा था।
टिफिन का आधा हिस्सा
लंच ब्रेक में उस दिन सीमा ने अपना टिफिन खोला। अंदर गरम-गरम आलू की सब्ज़ी और पराठे थे।
निर्मल ने अपने टिफिन में सिर्फ़ एक रोटी और थोड़ी सी चीनी रखी थी।
सीमा ने बिना पूछे आधा टिफिन उसकी तरफ बढ़ा दिया।
“ये सब मैं अकेले नहीं खा सकती,” वो बोली।
निर्मल ने मुस्कराकर सब्ज़ी उठाई और खाने लगा।
बिना कहे, बिना पूछे, एक-दूसरे की ज़रूरत को समझ लेना यही तो था बचपन का प्यार।
पहली बार बिछड़ने का डर
स्कूल की छुट्टी के बाद टीचर ने बताया कि अगले हफ्ते से सीमा की क्लास अलग हो जाएगी—अब वो चौथी कक्षा में जाएगी, और निर्मल तीसरी में रहेगा।
सीमा उदास हो गई। घर लौटते वक़्त वो चुपचाप चल रही थी।
निर्मल ने पूछा, “क्या हुआ सीमा?”
सीमा ने धीमे से कहा, “अब हम साथ नहीं बैठ पाएँगे।”
निर्मल रुक गया। थोड़ी देर सोचकर बोला,
“चाहे तुम किसी भी क्लास में जाओ, मेरा दोस्त तुम ही रहोगी। और मैं रोज़ तुम्हारा इंतज़ार करूँगा, वहीं पेड़ के नीचे।”
सीमा की आँखों में नमी थी, पर मुस्कान भी
छोटा सा वादा
अगली सुबह दोनों फिर से एक ही छाते में स्कूल पहुँचे। पेड़ के नीचे खड़े होकर निर्मल ने सीमा से कहा,
“चलो एक वादा करते हैंजब भी बारिश होगी, हम साथ चलेंगे, एक ही छाते में।”
सीमा ने मुस्कराकर हाथ आगे बढ़ाया, “वादा।”
दो मासूम हाथों का मिलना, बारिश की बूँदों के बीच जैसे आसमान ने भी उस पल को सलाम किया।